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अमेठी इनसाइड स्टोरी— हमार सहारा बनी,पर भगवान ने ऐसा लूटा कि हम छिन भर में बिखर गए…

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अमेठी— पल भर में उजड़ गई एक हंसते खेलते परिवार की खुशियां, एक सनकी सिरफिरे आशिक ने लूट ली एक हंसते खेलते परिवार की खुशियां। जिस घर में हंसी टटौली बच्चों के कदमों की चल कदमियां सुनाई देती थी आज उसी सुदामापुर गांव का माहौल जहां गमगीन हैं, व शोरशराबा थम गया है। गलियां सन्नाट॓ को चीर रही थीं और ऐसा लग रहा था कि मानों यहां पर कोई रहता ही नहीं है।अगर बहा कोई नजर कोई आ रहा था वह थी पुलिस।

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गांव में एक साथ चार शब्दों को देखने की पीड़ा सभी के मनो के अंदर टीस पहुंच रही थी, गांव वालों की आंखों में दुख साफ छलक नजर आ रहा था। सुनील के परिवार वाले ही नहीं गांव के लोग भी इस गम से उबर नहीं पा रहे हैं। अब वक्त ही इस जख्म पर मरहम लगा पाएगा। शिक्षक सुनील कुमार, पत्नी पूनम, बेटी समीक्षा व सष्टि के कफन में लिपटे शव देखने के बाद बच्चे-बुजुर्ग सभी सदमे में हैं। गांव के लोगों ने इस तरह की घटना कभी नहीं देखी थी।

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रायबरेली के गोला गंगा घाट पर जब शिक्षक सुनील कुमार, पत्नी पूनम, बेटी समीक्षा व सष्टि का अंतिम संस्कार हुआ तो सबकी आंखों में आंसू थे। हर जुबां पर यही सवाल कि ऐसा कैसे हो गया, ये तो बहुत गलत हुआ। गोला गंगा घाट पर एक ही चिता पर सुनील और पूनम के शवों का अंतिम संस्कार हुआ। गदागंज थाना क्षेत्र के सुदामापुर गांव निवासी शिक्षक सुनील कुमार, उसकी पत्नी पूनम भारती, दो बेटियों सृष्टि और समीक्षा की बृहस्पतिवार देर शाम अमेठी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

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अमेठी में पोस्टमार्टम के बाद शुक्रवार को चार शव गांव पहुंचे थे तो कोहराम मच गया था। शिक्षक सुनील कुमार के भाई सोनू के मुंबई में होने की वजह से शवों का अंतिम संस्कार नहीं हो पाया था। देर रात सोनू गांव पहुंचा। शनिवार की सुबह करीब आठ बजे एक साथ एक ही परिवार की चार अर्थियां उठी तो कोहराम मच गया।

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बेटे सुनील को याद कर के पिता राम गोपाल बिलख पड़ते उनकी आंखों से आशु रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। टकटकी लगाए देख रहे है कि कहीं से उनका बेटा आयेगा। बेटे सुनील को याद करते हुए बताते है कि हम मजदूरी किए, भूखे रहे, हमार बेटा भी गरीबी सहकर आगे बढ़ा…। सोचा था कि बेटा आगे बढ़ जाए तो नाम रोशन होगा…। हमार सहारा बनी, पर भगवान ने ऐसा लूटा कि हम छिन भर में बिखर गए…। पुरानी बातें याद कर कहते हैं कि रात को बेटवा का फोन आवत रहै तो पूछत रहै कि पैसे की जरूरत तो नहीं है…। यदि कह देत कि जरूरत हो तो तुरंत फोन से ही पैसा भेज देत रहै…। राम गोपाल ने बताया कि मुख्यमंत्री से मिले रहेन…। वह हमको हर तरह की मदद की बात कहे हैं…। इसी के साथ भावुक होकर कहते हैं कि जिंदगी तो बेकार हो गई, पर का करें, जियै का तो परी…। 

सारांश— आखिर यह कैसा प्यार था जिसने अपनी ही प्रेमिका के मासूम बच्चों उसके पति अब खुद अपनी प्रेमिका को मौत के घाट उतार दिया। यह प्यार नहीं पागलपन होता है। क्योंकि इंसान प्यार में खुशियां देता है ना कि किसी की जान लेता है। 

रिपोर्ट— पवन वर्मा 

khabara Dar
Author: khabara Dar

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